विशेषज्ञों के अनुसार आने वाला समय बिजली चालित वाहनों का ही होगा। आग लगने की घटनाओं से ईवी की बिक्री प्रभावित होने के दीर्घकालिक आसार नहीं हैं
शशि कुमार झा
लेखक आर्थिक विषयों के जाने-माने विशेषज्ञ और स्वतंत्र पत्रकार हैं। अतीत में वह दैनिक हिंदुस्तान और अन्य राष्ट्रीय समाचार पत्रों से जुड़े रहे हैं।
देश में इन दिनों बिजली से चलने वाले वाहनों (इलेक्ट्रिक वेहिकल्स या ईवी ) की खबरें सुर्खियों में हैं। जहां आने वाला समय इनका बताया जा रहा है, वहीं इनमें खासकर, दुपहिया वाहनों में आग लगने की घटनाओं से एक किस्म की असुरक्षा की धारणा भी बनी है।
नीति आयोग का अनुमान है कि 2030 तक भारत में 80 प्रतिशत दुपहिया और तिपहिये, 40 प्रतिशत बसें और 30 से 70 प्रतिशत कारें बिजली से चलने वाली होंगी। नीति आयोग के मुताबिक, भारत 2070 तक जीरो इमिशन यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन की महत्वाकांक्षी योजना बना रहा है और सरकार का पूरा फोकस और फंड इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की दिशा में है। मार्च 2022 में, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में उल्लेख किया कि 2019-20 तथा 2020-21 के बीच दुपहिया ईवी में 422 प्रतिशत की बढोतरी हुई, तिपहियों में 75 प्रतिशत और चौपहिया वाहनों में 230 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इलेक्ट्रिक बसों की संख्या में भी 1200 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ। लेकिन भारत में पूरी तरह से इलेक्ट्रिक इकोसिस्टम की डगर बहुत आसान भी नहीं है। दुपहियों और चारपहियों के इलेक्ट्रिक वैरिएंट की कीमत आम तौर पर नियमित फ्यूएल ( पेट्रोल, डीजल आदि ) विकल्पों की तुलना में बहुत अधिक होती है।
लगभग 60 प्रतिशत उपभोक्ता मानते हैं कि ईवी उनके बजट में नहीं आता। इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को अपनाने की दिशा में यह संभवतः सबसे बड़ी बाधा है। आवश्यक सुविधाओं की कमी के कारण उनके रखरखाव की लागत भी काफी अधिक है। देश में 65,000 से भी अधिक पेट्रोल पंप हैं लेकिन ईवी चार्जिंग स्टेशनों की संख्या केवल 1640 है। देश में ईवी के केवल फॉसिल फ्यूएल से चलने वाले 2 और 4 पहिया वाहनों के वैरिएंट पहले से उपलब्ध हैं। हाई परफॉर्मिंग लक्जरी वैरिएंट या टेस्ला जैसी सुपरकारों ने अभी तक भारतीय बाजारों में दस्तक नहीं दी है।
ऊंची लागत और अधिक कीमत, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, अच्छा परफॉर्म करने वाले ईवी की कमी और इससे भी महत्वपूर्ण, हाल के दिनों में इनमें खासकर, स्कूटरों में आग लगने की घटनाओं से उपभोक्ताओं में चिंता भी बढ़ी है।
हालांकि क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी क्रिसिल ने कहा है कि बिजली से चलने वाले वाहनों (इलेक्ट्रिक वेहिकल्स या ईवी) में आग लगने की हाल की कई घटनाओं के बावजूद दीर्घकालिक लिहाज से ईवी की बिक्री प्रभावित होने की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आती। लेकिन इससे इतना अवश्य हुआ कि तत्काल इन वाहनों की सुरक्षा को लेकर थोड़ी ऐसी आशंका जन्म लेती दिखाई दे रही है कि ऐसे वाहन सुरक्षित हैं या नहीं।
गौरतलब है कि पिछले दो महीनों के दौरान ईवी में आग लगने की कई घटनाएं सामने आईं जिनमें 9 अप्रैल को नासिक में एक कंटेनर में लोड किए जाने के दौरान 40 में से 20 इलेक्ट्रिक स्कूटरों में आग लग गई। इससे पहले मार्च में भी देश के विभिन्न हिस्सों में ओकिनावा और ओला समेत इलेक्ट्रिक स्कूटरों में आग लगने की चार घटनाएं हुईं थीं जिनमें मौतें भी हुई थीं। इन घटनाओं के कारण सरकार को इनकी फॉरेन्सिक जांच करने का आदेश देना पड़ा था।
विशेषज्ञों का मानना है कि इलेक्ट्रिक स्कूटरों में आग लगने की सबसे बड़ी वजह उनकी बैटरियां होती हैं जिनकी निम्न क्वालिटी से ऐसे हादसे होते हैं। भारत जैसे गर्म वातावरण वाले देश में थर्मल रनवे की वजह से बैटरियों का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है जिससे आग लगने की आशंका बढ़ जाती है। विदेशों खासकर चीन से आयातित बैटरी इसके लिए अधिक जिम्मेवार हैं। इन बैटरियों की डिजाइन और निर्माण भारत के मौसम के अनुकूल होना चाहिए तथा लिथियम आयन वाली बैटरी को सख्त परीक्षण के बाद ही भारत के बाजारों में बिक्री के लिए उतारा जाना चाहिए। क्रिसिल के निदेशक हेमल ठक्कर का मानना है कि यह नए युग का उद्योग है और ऐसी किसी भी इंडस्ट्री के सामने आरंभ में इस प्रकार की समस्याएं आना निहायत लाजिमी हैं। बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं कि ऑटोमोटिव प्रोफेशनलों तथा आम लोगों दोनों में ही यह धारणा बढ़ रही है कि आने वाला समय इलेक्ट्रिक यानी बिजली चालित वाहनों का ही होगा। ईवी के लिए बढ़ रही मांग या क्रेज ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए पेरिस समझौते के तहत निर्धारित वैश्विक जलवायु एजेंडा से भी प्रेरित है। भारत को अपनी ऊर्जा खपत के लिए लगभग दो तिहाई तक आयातित ईंधनों पर निर्भर रहना पड़ता है और आने वाले समय में इनकी वजह से बुनियादी ढांचे से संबंधित समस्याओं तथा वायु प्रदूषण में और अधिक इजाफा होने की आशंका है। भारत ने ग्लासगो सम्मेलन में 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को घटा कर 1 बिलियन टन तक लाने और 2070 तक इसे शून्य (नेट जीरो) कर देने का संकल्प भी लिया है।
भारत सरकार ने देश में ईवी इकोसिस्टम विकसित करने तथा इसे बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाये हैं जिनमें ईवी के त्वरित अंगीकरण तथा विनिर्माण (फेम 2 ) स्कीम, आपूर्ति पक्ष के लिए एडवांस्ड कैमिस्ट्री सेल (एसीसी ) के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) स्कीम, बिजली संचालित वाहनों के लिए ऑटो तथा ऑटो कंपोनेंट पीएलआई स्कीम प्रमुख है। सरकार इससे जुड़ी टेक्नोलॉजी, अनुसंधान एवं विकास तथा कुशल श्रम को भी बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है जिससे रोजगार सृजन के अतिरिक्त ऊर्जा आयात से निर्भरता भी कम हो सके। बिजली मंत्रालय ने 3 किमी के एक ग्रिड में तथा राजमार्गों के दोनों तरफ प्रत्येक 25 किमी पर कम से एक चार्जिंग स्टेशन लगाये जाने की अनुशंसा की है।
कहना न होगा कि सरकार अपनी तरफ से इस उद्योग की पुरजोर सहायता कर रही है और अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रिक वाहन मालिकों के रूप में तबदील करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर सब्सिडी भी उपलब्ध करा रही है। कर्ज लेकर इलेक्ट्रिक कार खरीदने वालों को 1.5 लाख रुपये की कर छूट भी दी जा रही है। इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर जीएसटी को शून्य सेस के साथ केवल 5 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया है।
सरकार की फेम स्कीम यानी हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन के त्वरित अंगीकरण और विनिर्माण योजना के दो चरणों के तहत, सरकार देश में इलेक्ट्रिक वाहन के विनिर्माण के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार लाने का प्रयास कर रही है। तेल विपणन कंपनियों द्वारा देश भर में 22,000 ईवी चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना किए जाने की भी योजना है। 2022 के आम बजट में ईवी को चार्ज करने के एक सरल तरीके के रूप में बैटरी स्वैपिंग नीति की भी घोषणा की गई। पिछले वर्ष सरकार ने ऑटो निर्माताओं के लिए पीएलआई की भी घोषणा की थी जिसका लक्ष्य इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा देना है।
ईवी नए युग का उद्योग है और ऐसी किसी भी इंडस्ट्री के सामने आरंभ में आग लगने या अन्य संबंधित घटनाओं का होना स्वाभाविक है।
– क्रिसिल के निदेशक हेमल ठक्कर
2019-20 तथा 2020-21 के बीच दुपहिया ईवी में 422 प्रतिशत की बढोतरी हुई, तिपहियों में 75 प्रतिशत और चौपहिया वाहनों में 230 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इलेक्ट्रिक बसों की संख्या में भी 1200 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ।
– सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी