शशि कुमार झा
यूक्रेन-रूस युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को लेकर अभी से अनुमान लगाना जल्दीबाजी होगी , लेकिन वैश्विक अनिश्चितताओं को देखते हुए देश को चौकस रहने की जरुरत है।
भारत को मुख्य रूप से महंगाई सहित कई मोर्चों पर यूक्रेन-रूस युद्ध का खामियाजा उठाना होगा। भारत के लिए फिलहाल पटरी पर आती दिख रही अर्थव्यवस्था को बड़े झटके लग सकते हैं। कमोडिटी की बढ़ी हुई कीमतें और यूक्रेन-रूस के बीच भू-राजनीतिक तनाव से उत्पन्न आपूर्ति श्रृंखला बाधाएं न केवल भारत तथा पूरी दुनिया की आर्थिक गतिविधियों के लिए चुनौतियां पेश कर सकते हैं।
कच्चे तेल, जिसका आयात भारत की तेल आवश्यकताओं के दो तिहाई हिस्से की पूर्ति करता है, की बढ़ी हुई कीमतों के रूप में इसका व्यापक असर होगा जो परिवहन सहित अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त भारत का खाद्य तेल बाजार भी इस युद्ध के प्रभाव की गिरफ्त में आ सकता है क्योंकि देश अपने सनफ्लावर ऑयल का 90 प्रतिशत से अधिक रूस तथा यूक्रेन से ही आयात करता है।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय का मानना है कि तेल कीमतों में बढोतरी से आगामी महीनों में महंगाई के हालात बने रह सकते हैं। सरकार की रूस से सस्ते कच्चे तेल लेने के प्रयासों तथा पारंपरिक हाईड्रोकार्बन के अतिरिक्त ऊर्जा के स्रोतों के विविधीकरण की कोशिशें कितनी फलीभूत होंगी, इसके बारे में अभी से कोई अनुमान लगाना कठिन है। विख्यात अर्थशास्त्री तथा राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी ) के निदेशक पिनाकी चक्रवर्ती का भी ऐसा ही विचार है कि यूक्रेन-रूस युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को लेकर अभी से अनुमान लगाना जल्दीबाजी होगी।
लेकिन अंतरराष्ट्रीय साख निर्धारण एजेन्सियों ने यूक्रेन-रूस युद्ध के परिणामस्वरूप अभी से ही भारत के आर्थिक विकास की गति को कमतर करके आंकना शुरु कर दिया है। रेटिंग एजेंसी मूडीज की इंवेस्टर सर्विस ने भारत के 2022 के आर्थिक विकास की गति को पहले के 9.5 प्रतिशत के अनुमान से घटा कर 9.1 प्रतिशत कर दिया है। मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यूक्रेन-रूस युद्व के संकट ने न केवल वैश्विक आर्थिक विस्तार को पटरी से उतार दिया है बल्कि इसे आघात भी पहुंचाया है। मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में 2023 के लिए भारत के आर्थिक विकास का अनुमान और कम कर इसे 5.4 प्रतिशत कर दिया है। विदेशी ब्रोकरेज कंपनी जे पी मौर्गन ने भारत के विकास अनुमान को ‘ न्यूट्रल‘ से ‘अंडरवेट‘ कर दिया है और आशंका जताई है कि जीडीपी की वृद्धि निराशाजनक रह सकती है।
हालांकि वित्त मंत्रालय ने यह उम्मीद जरुर जताई कि प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना तथा उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन स्कीमें (पीएलआई ) वैश्विक आर्थिक झटके को कम करने में जरुर कामयाब होंगी और निवेश को प्रेरित करेंगी जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार आएगा। मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया कि ‘14 सेक्टरों में पीएलआई की स्कीम उन क्षेत्रों का दोहन करने में समर्थ बनाएगी जिनका अभी तक समुचित तरीके से दोहन नहीं किया है। इससे विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता में इजाफा होगा और उच्चतर निर्यात विकास अर्जित करना तथा प्रधानमंत्री के आत्म निर्भर भारत के विजन को हासिल करना संभव हो पाएगा।
दरअसल भारत की समस्या यह है कि यह वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की उच्चतर कीमतों के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील है। इसकी मुख्य वजह यह है कि इसे अपनी जरुरतों के 80 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल का आयात करना पड़ता है। यही वजह है कि जे पी मौर्गन द्वारा विकास अनुमान में कटौती करने के बाद ब्रोकरेज कंपनी क्रेडिट सुईस (सीएस) ने भी भारत के विकास अनुमान में इसी प्रकार की कटौती की। क्रेडिट सुईस का मानना है कि भारत पर एशिया के अन्य देशों की तुलना में कच्चे तेल की उच्चतर कीमतों का ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। क्रेडिट सुईस ने जी20 देशों के विकास अनुमान को भी 4.3 प्रतिशत से घटा कर 3.6 प्रतिशत कर दिया है।
श्री चक्रवर्ती का मानना है कि कई देशों में मुद्रास्फीति अपेक्षा से कहीं अधिक दिख रही है, और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं आ रही हैं, वित्तीय बाजारों में तेज उतार चढ़ाव दिख रहा है। कोविड-19 महामारी की स्थिति से हम उबर ही रहे थे कि इस यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण वैश्विक सूक्ष्म आर्थिक अनिश्चितताएं फिर से बढ़ गई हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समीक्षा पर टिप्पणी करने के दौरान भी यूक्रेन-रूस युद्व के भारत पर आर्थिक प्रभाव को लेकर आशंका जताई थी और कहा था कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधाएं तथा इनपुट लागत दबाव का असर दीर्घकालिक समय तक भी रह सकता है। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि मार्च के बाद कुछ बड़े देशों में कोविड-19 का दुबारा प्रकोप शुरु हो जाने से तथा इसकी वजह से लॉकडाउन की स्थिति आ जाने से मामला और बिगड़ सकता है और विश्व व्यापार तथा उत्पादन पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इससे आर्थिक सुधार की प्रक्रिया भी धीमी पड़ सकती है।
भारत के लिए पिछले दिनों बड़ी राहत की बात यह रही कि बदतर होती वैश्विक आपूर्ति स्थिति तथा विश्व अर्थव्यवस्था की सुस्त पड़ती रफ्तार के बावजूद भारत के वस्तु व्यापार ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 400 बिलियन डॉलर के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल कर लिया। भारत का सेवा निर्यात भी मजबूत बना रहा जिसकी बदौलत भारत व्यापार घाटे को कुछ हद तक संतुलित रखने में कामयाब रहा।
श्री चक्रवर्ती के अनुसार, भारत में फिलहाल उच्च महंगाई दर, निम्न विकास तथा उच्च राजकोषीय घाटे की स्थिति नहीं है। वास्तव में देश की सूक्ष्म आर्थिक स्थिति स्थिर है और देश व्यापक रूप से टिकाऊ सुधार की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
भारत का प्रत्यक्ष रूप से सबसे अधिक नुकसान महंगाई के मोर्चे पर दिखने वाला है जिसके कारण लोगों का जीवन स्तर प्रभावित होगा। ऊर्जा की उच्चतर कीमतों का परिवहन की लागत तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ेगा।
बारक्ले ने अपने एक शोध पत्र में लिखा कि आपूर्ति श्रृंखला के प्रभावित होने से सबसे ज्यादा असर खाद्य तथा उर्वरक क्षेत्रों पर पड़ सकता है। लेकिन महंगाई का असर केवल तेल या गैस या ऊर्जा तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि स्टील, अल्यूमिनियम तथा निकेल जैसी धातुओं की कीमतें भी बढेंगी , कोयला क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहेगा। रूस का पैलेडियम जैसी धातु के वैश्विक उत्पादन में 35 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा है जिसकी वजह से ऑटोमोबाइल आपूर्ति श्रंखला प्रभावित हो सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर इस युद्ध का तीन प्रकार से प्रभाव पड़ सकता है, प्रत्यक्ष प्रभाव जिसमें रूस और यूक्रेन दोनों के साथ व्यापार प्रभावित हो सकते हैं, अप्रत्यक्ष प्रभाव जो वैश्विक कमोडिटी तथा ऊर्जा बाजार के शिफ्ट होने से संभव है तथा सूक्ष्म आर्थिक प्रभाव जिसकी वजह से कुछ नीतिगत कदमों में बदलाव किया जा सकता है या इससे संकट के किसी प्रभाव को प्रबंधित करने के लिए कार्यान्वयन या व्यवसाय से संबंधित उपायों में फेरबदल किया जा सकता है।
भारतीय स्टेट बैंक के अर्थशास्त्रियों की इस बाबत छपी एक रिपोर्ट में इस युद्ध से अल्पकालिक अवधि में वित्तीय बाजारों, विनिमय दरों तथा कच्चे तेल की कीमत का महंगाई पर प्रभाव की बात तो की गई है लेकिन उनका मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभवतः इसका कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं पड़ेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी बनी रहेगी। कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि देश की वर्तमान सूक्ष्म आर्थिक स्थिति निश्चित रूप से पहले की तुलना में बेहतर है, लेकिन वैश्विक अनिश्चितताओं को देखते हुए देश को चौकस रहने की जरुरत है।