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बसंत पंचमी: ज्ञानी बनने के लिए संकल्पित होने का सही अवसर

बसंत पंचमी: ज्ञानी बनने के लिए संकल्पित होने का सही अवसर

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विद्वान व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। माँ शारदे की अभ्यर्थना करने पर विद्या, विवेक, बुद्धि सब कुछ प्राप्त होता है। यही वजह है माँ सरस्वती को न केवल ‘ज्ञान की देवी’ माना जाता है बल्कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी माँ सरस्वती को पूजते हैं।

गोवर्धनदास बिन्नाणी: बीकानेर निवासी लेखक वित्तीय सलाहकार और समाज चिंतक हैं

श्रीमद्भागवत गीता में प्रभु श्री कृष्ण जी ने स्वयं को ‘ऋतुनाम्कु सुमाकर:’ कह कर बसंत ऋतु की श्रेष्ठता प्रतिष्ठित की है। और जैसा हम सभी जानते हैं कि पतझड़ पश्चात बसंत ऋतु में माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के साथ-साथ ‘श्री पंचमी’ या ‘ज्ञान पंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को ज्ञान और कला की देवी ‘माँ सरस्वती’ का जन्मदिवस माना जाता है। इसलिये इस दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा बड़े ही उल्लास व उमंग के साथ की जाती है। मुझे भी बाल्यकाल में माँ सरस्वती की नित्य उपासना हेतु एक निम्न स्तुति बतायी गयी थी जिसे मैं आज भी बिना भूले प्रतिदिन करता हूँ:

यया विना जगत्सर्वम्, शाश्वतजीवनं मृतं भवेत्। ज्ञानाधि
देवी या तस्यै, सरस्वत्यै नमो नम:।।
यया विना जगत्सर्वं, मुकमुन्वत् यत् सदा। वागाधिष्ठात्री या
देवी, तस्यै वाण्यै नमो नम:।।
सरस्वती महाभागे, विद्ये कमललोचने।
विश्वरूपे विशालाक्षी, विद्यां देहि नमोऽस्तुते।।


आप सभी के ध्यानार ्थ बता दँू कि विश्व प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक मैक्स मूलर ने लिखा है “विश्व की पुस्तकालयों में प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद है और इसी ऋग्वेद में उल्लेख है
सरस्वती ं देवयन्तो हवन् ते
अर्थात ् देव-पद के अभिलाषी सरस्वती का आह्वान करते हैं।


पुराणो ं के अनुसार, मा ँ सरस्वती से सप्तविध स्वरो ं का ज्ञान प्राप्त होता है। यही वजह है उन्हें मा ँ सरस्वती कहा जाता है अर्थात मा ँ सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है। इसलिये ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो ं ही मा ँ सरस्वती को पूजते हैं। प्रबुद्ध पाठक जानते ही होगं े हिंदू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणो ं में से एक देवी-भागवत में भी मा ँ सरस्वती के बारे में विस्तार से बताया गया है

आदौ सरस्वती पूजा कृष्णेन विनिर्मिता।यत्प्रसादान्मुनि श्रेष्ठ मूर्खो भवति पंडित:।।

मतलब श्री कृष्ण ने भी सबसे पहले माँ सरस्वती के महत्व का वर्णन किया और कहा कि उनकी पूजा अवश्य की जानी चाहिए जिसकी कृपा से मूर्ख भी विद्वान हो जाते हैं।

माँ शारदे की अभ्यर्थना करने पर विद्या, ज्ञान, विवेक, बुद्धि की प्राप्ति होती है। इसलिये यह तो आप सभी को मानना ही होगा कि विद्वान व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। इसी तथ्य को प्रमाणित करने के लिये एक ऐतिहासिक सत्य घटना आप सभी के साथ साँझा कर रहा हूँ: ‘हिन्द शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को सोलह बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा और उन्हें बंदी बना अपने साथ काबुल (अफगानिस्तान) ले गया और वहाँ उनकी दोनों आंखें फोड़ दी।’

यह समाचार जानने के बाद राजकवि चंद बरदाई हिन्द शिरोमणि से मिलने काबुल कैदखाने पहुंचे तो जिस दयनीय हालत में उन्हें देखा तो राजकवि के कोमल हृदय को गहरा आघात लगा और उसी वक्त उन्होंने मोहम्मद गौरी से बदला लेने की योजना बना डाली।

उसी योजनानुसार चंद बरदाई ने गौरी को अपने प्रतापी सम्राट हिन्द शिरोमणि की एक विलक्षण विधा शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदना) के बारे में बताते हुये आग्रह किया कि यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।

इस अनोखी विधा के अवलोकनार्थ गौरी तुरन्त ही तैयार हो गया और उसने आनन फानन में अपने राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित कर दिया। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया।

चँूकि हिन्द शिरोमणि और राजकवि ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी और इस रणनीति के तहत चंद बरदाई ने मोहम्मद गौरी से लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवा देने का आग्रह किया और मोहम्मद गौरी ने राजकवि के निर्देशानुसार तवे लगवा दिये। इसके बाद दोनों आँखों से अंधे पृथ्वीराज को कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।

इसके बाद राजकवि चंद बरदाई ने पृथ्वीराज चौहान के वीर गाथाओं का बखान करते हुए मोहम्मद गौरी के बैठने के स्थान को चिन्हित करते हुये पृथ्वीराज को अवगत करवाने के इरादे से निम्न बिरूदावली गायी:

चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।

अर्थात् चार बांस, चौबीस गज और आठ अंगुल की दूरी पर सुल्तान बैठा है इसलिए चौहान अपने लक्ष्य को चूकना नहीं, अवश्य हासिल करना।

इस तरह पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन करवा उन्होनें मोहम्मद गौरी कि ओर मुखातिब होकर निवेदिन किया कि मेरे प्रतापी सम्राट आज यहाँ आपके बंदी की हैसियत से उपस्थित हैं, इसलिए आप के आदेश के पश्चात ही पृथ्वीराज अपने शब्दभेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।इस पर ज्यों ही मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज जी को प्रदर्शन का आदेश दिया। पृथ्वीराज को गौरी कहाँ बैठा है, ज्ञात हो गया और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।

बाण लगते ही गौरी उपर्युक्त कथित ऊं चाई से नीचे धड़ाम से आ गिरा और उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। उसके बाद चारो ंऔर भगदड़ और हाहाकार मच गया और इसी सब का फायदा उठाते हुए हिन्द शिरोमणि प्रतापी सम्राट पृथ्वीराज जी और राजकवि चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजनानुसार एक- दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण न्योछावर कर दिये।

यह आत्मबलिदान वाली घटना 1192 को बसंत पंचमी के दिन ही हुई थी।

उपरोक्त घटना से यह तो स्पष्ट हो गया कि विद्वान व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। साथ यह भी कि बसंत पंचमी का दिन ज्ञानवान बनने के लिये संकल्पित होने
का सही अवसर है।

चँूकि आजकल बसं त पंचमी वाले दिन अनेको ंजगह अनेको ं प्रकार के आयोजन होने लग गये हैं इसलिये आप उमंग व उल्लास के साथ आयोजित होने वाले इन सांस्कृ तिक कार्यक्रमों में अपना हुनर प्रदर्शित करने के अवसर का लाभ अवश्य उठायें।।

Tags: #india#IndianDiaspora#pravasiindiansdiasporaIndian Culturenamaste bharat magazine
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