जीएसटी के अमल में आने और सरकार द्वारा लगभग हर स्तर पर कड़ी निगरानी किए जाने के बावजूद पिछले कुछ समय से कालाधन व हवाला गतिविधियां में तेजी देखी जा रही है
शशि कुमार झा
कन्नौज का इत्र और कंपाउड व्यापारी पीयूष जैन इन दिनों सुर्खियों में है। कानपुर और कन्नौज स्थित उसके घरों की दीवारों और तहखानों से निकलने वाले नोटों और सोने चांदी से भरे बक्सों का तांता लगा हुआ है। उनकी गिनती खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। कानपुर और कन्नौज स्थित उसके घरों से 300 करोड़ रुपये से भी अधिक की नकदी और सैकडों किलो सोना चांदी (बिस्किट और छड़ें), 600 किलो चंदन का तेल अभी तक बरामद हो चुका है। पीयूष के कन्नौज स्थित घर से 64 किलो के जो सोने के बिस्किट मिले हैं, उन पर विदेशी मार्क हैं। उनके कंपाउंड के व्यापार लगभग 50 देशों में फैले हुए है। अंततः पीयूष को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और आगे की कानूनी कार्रवाई जारी है।
पीयूष जैन के घर से कैश या सोने चांदी की इतनी बड़ी बरामदगी कोई अकेली घटना नहीं है। अगर पिछले कुछ समय से ही देखें तो आयकर विभाग, प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) जैसी सरकारी एजेन्सियों ने दर्जनों ऐसी बरामदगी की है। 40 से अधिक बक्सों में कैश निकला है जबकि नोटबंदी और जीएसटी के बाद काला धन की समाप्ति का ऐलान कर दिया गया था। क्या किसी के पास इसका कोई उत्तर है कि अभी भी इतनी बड़ी मात्रा में किस प्रकार काला धन पैदा हो रहा है। यह धन कहां कहां जाता है और इसका बचा हुआ हिस्सा कहाँ-कहाँ बंटता है। क्या केंद्र सरकार यह बताने की जवाबदेही से इंकार कर सकती है कि जीएसटी के बावजूद इतना अधिक कैश पैदा कैसे हो रहा है। यह बेहद ताज्जुब की बात है कि नोटबंदी के बाद भी और खासकर जीएसटी के अमल के आने के बावजूद किस प्रकार कालाबाजारी और कालाधन रखने वाले इतनी बड़ी मात्रा में ऐसा कर ले रहे हैं।
इतनी बड़ी मात्रा में काला धन का निकलना और तमाम बंदिशों और निगरानियों के बावजूद समानांतर अर्थव्यवस्था का कायम रहना देश और वित्तीय व्यवस्था के लिए बेहद नुकसानदायक है। क्या ऐसा इसलिए है कि व्यवसायों और कारोबार की निगरानी में अभी भी ढेर सारी खामियां हैं जिनका फायदा ये भ्रष्ट कारोबार उठा रहे हैं और कोढ़ में खाज की तरह भ्रष्ट राजनेताओं और पार्टियों का इन्हें शह प्राप्त हो रहा है। उत्तर प्रदेश में जल्द ही होने वाले विधान सभा चुनावों से भी इनका संबंध हो सकता है, इस आशंका को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अमल में आने और सरकार द्वारा लगभग हर स्तर पर कड़ी निगरानी किए जाने के बावजूद पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाओं में तेजी ही देखी जा रही है। नकली कंपनियों, फर्जी चालान और धोखेधड़ी से भरे इनपुट टैक्स क्रेडिट जीएसटी के अधिकारियों के लिए बड़े सरदर्द बन चुके हैं। कर चोरी से बचने के लिए एक निर्बाधित श्रृंखला के जरिये सभी ट्रांजेक्शन के लिए इलेक्ट्रोनिक पद्धति बनाने की कवायद अर्थात जीएसटी व्यवस्था बहुत हद तक विफल होती प्रतीत हो रही है जिसके लिए कर चोरी रोकने में टेक्नोलाजी की नाकामी, निगरानी में चूक आदि कई कारण जिम्मेदार हैं। पीयूष जैन ने कबूल किया कि जो नकदी उसके परिसरों से बरामद हुई है, वह बिना करों के भुगतान के वस्तुओं की बिक्री से ही संबंधित है।
सीजीएसटी अधिनियम की धारा 67 के तहत गिरफ्तार पीयूष जैन का मामला निस्संदेह एक बड़ा मामला है लेकिन चिंता की बात यह है कि देश में पान मसाला व्यापारी सहित इस प्रकार के दर्जनों ऐसे मामले आते जा रहे हैं और सरकार तथा केंद्रीय एजेन्सियां इनकी रोकथाम करने में नाकाम रह जाती हैं। सवाल उठता है आखिर इतने प्रयासों के बावजूद क्या सीबीआईसी अधिकारियों या केंद्रीय एजेन्सियों की तरफ से निगरानी में अभी भी खामियां हैं या जीएसटी लगाये जाने से कोई फर्क नहीं नहीं पड़ा है? इसके अतिरिक्त, यह कहना भी गलत नहीं होगा कि हमारी सिस्टम में ही लंबे समय से गलत करने के बावजूद नौकरशाहों तथा राजनेताओं की सांठगांठ से बच निकलने की मनोवृत्ति व्याप्त रही है जो सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।
पर धीरे धीरे ही सही, ऐसे धोखाधड़ी के मामलों में निश्चित रूप से कमी आ रही है। इतनी बड़ी संख्या में छापे पड़ना और दोषी व्यक्तियों, कंपनियों का पकड़ा जाना इसी बात के साक्षी हैं। सरकार की तरफ से ठोस संकेत और हरी झंडी मिलने के बाद सभी संबंधित अधिकारी पूरे जोर शोर से ऐसे अवांछित तत्वों को पकड़ने और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने में जुट गए हैं। संबंधित अधिकारी नवीनतम टूल्स, डिजिटल साक्ष्यों का उपयोग कर रहे हैं तथा घपलेबाजों को पकड़ने के लिए सरकार के अन्य विभागों से भी तालमेल कर जरुरी सूचना प्राप्त कर रहे हैं। इन कार्रवाइयों को कानून में सांवधिक तथा प्रक्रियागत बदलाव का भी लाभ प्राप्त हो रहा है। कानूनों के बेहतर अनुपालन तथा शानदार जीएसटी कर संग्रह से भी राष्ट्रव्यापी अभियान को मदद मिली है। नकली आईटीसी से लाभ प्राप्त करने के मामलों में कई विख्यात कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। वर्ष 2020-21 में, नकली इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) से संबंधित 8000 से भी अधिक मामलों का खुलासा हुआ जिसमें 426 लोगों की गिरफ्तारी हुई। कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण नकली चालानों (इनवायसों) की अंकुश लगाने में सुस्ती आई थी, लेकिन उसके बाद सरकारी एजेन्सियां एक बार फिर से सक्रिय हो गईं।
नकली आईटीसी से संबंधित जिन 8000 से भी अधिक मामलों का खुलासा हुआ था, वे 35,000 करोड़ से भी अधिक के थे और जिन 426 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, उनमें चार्टर्ड अकाउंटैंट तथा वकील जैसे 14 प्रोफेशनल भी शामिल थे। आईटीसी के प्रावधानों का दुरुपयोग जीएसटी व्यवस्था के तहत कर चोरी का सबसे सामान्य तरीका है लेकिन इसके अतिरिक्त गलत वर्गीकरण, कम मूल्यांकन और वस्तुओं तथा सेवाओं की अवैध आपूर्ति से संबंधित कर चोरी का भी जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई) और केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) ने पता लगाया। दरअसल नवंबर, 2020 से नकली जीएसटी चालान के खिलाफ चलाये जा रहे विशेष राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत कई लाभार्थियों और निदेशकों को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। वित्त वर्ष 2021-22 में अभी तक सीबीआईसी के तहत डीजीजीआई तथा सीजीएसटी ने 1200 कंपनियों से संबंधित 500 से अधिक मामलों का पता लगाया जा चुका है।
(लेखक आर्थिक विषयों के एक जाने माने विशेषज्ञ एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं। पूर्व में वे दैनिक हिंदुस्तान इत्यादि राष्ट्रीय समाचार पत्रों से जुड़े रहे हैं।)