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विकास और महंगाई में सामंजस्य

August 13, 2023
in Perspective

शशि कुमार झा

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पिछले महीने नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करने का फैसला एक ही साथ विकास को बढ़ावा देने और महंगाई दर को एक तयशुदा सीमा के भीतर बनाये रखने की कोशिश है। होम लोन की दर न बढ़ने से घर खरीदारों को भी फायदा मिलेगा

भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले महीने अपनी त्रैमासिक नीतिगत दरों की घोषणा की। उसमें रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों (पॉलिसी या रेपो रेट ) में यथास्थिति बनाये रखी और कोई बदलाव नहीं किया। वर्तमान में, 6.5 प्रतिशत की ये ब्याज दरें पिछले दो दशक के निम्नतम स्तर पर है। अगर हम मौद्रिक नीति, जिसके तहत इन नीतिगत दरों की घोषणा की जाती है, की बात करें तो मौद्रिक नीति किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था का आधार है और जिससे पार्ट टाइम काम करने वालों से लेकर विशाल वित्तीय संस्थान, जिनमें विदेशी और घरेलू दोनों ही शामिल हैं, पर प्रभाव डालता है। देश का केंद्रीय बैंक यानी रिजर्व बैंक देश की अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को प्रबंधित करने के लिए मौद्रिक नीति का उपयोग करता है जो मुद्रास्फीति दर पर अंकुश और रोजगार को ट्रैक पर रखने एवं वृद्धि दर को बढ़ाने के लिए मुद्रा और ऋण की राशि के सर्कुलेशन को बढ़ाता या घटाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मूल्य की स्थिरता को सक्षम बनाना, बैंक ऋण ओर धन आपूर्ति के विस्तार को नियंत्रण में रखना, स्थायी निवेशों की उत्पादकता को बढ़ाना और अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टरों में ऋण के एकसमान वितरण पर नजर रखना है।

इस क्षेत्र के विशेषज्ञों और जानकारों ने अपने अपने तरीके से इसकी विवेचना और विश्लेषण किया। जहां कुछ लोगों का मानना था कि रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में यथास्थिति बनाये रखे जाने से विकास की गति को और बढ़ावा मिलेगा तथा महंगाई दरों को नियंत्रण में रखने में सहायता मिलेगी। और साथ ही साथ, रेपो दरों में वृद्धि न किए जाने के फैसले से घर खरीदारों को कुछ समय के लिए राहत मिलेगी क्योंकि अगर रेपो दर नहीं बढ़ाया गया तो होम लोन की दर स्थिर बनी रहेगी। वहीं कई लोगों ने कहा कि बेशक एक निम्न ब्याज दर का परिणाम उच्च उपभोग और विकास के रूप में आएगा जिससे घरेलू या पारिवारिक बचत को नुकसान पहुंच सकता है। दुनिया भर में फैले भू-राजनीतिक तनाव, कच्चे तेल की कीमतें, वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार चढ़ाव, आपूर्ति में बाधाएं, और दुश्वारी से भरे माहौल को देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं कि वित्तीय वैश्विक स्थितियों में भारत उम्मीद और अवसर का केंद्र बना हुआ है जिसे देखते हुए रिजर्व बैंक का यह कदम अपेक्षित और उचित है।

गौरतलब है कि निम्न ब्याज दर उनके लिए नुकसानदायक है जो किसी बचत व सावधि जमा खाते या बैंकों द्वारा प्रस्तुत की गई इस प्रकार की अन्य योजनाओं से ब्याज अर्जित करते हैं। अगर ब्याज दरें निम्न बनी रहती हैं तो इस बचत योजनाओं से अच्छा रिटर्न नहीं मिल पाता। दूसरे शब्दों में कहें तो उच्च ब्याज दरें बचत को प्रोत्साहित करती हैं क्योंकि इससे बैंकों द्वारा प्रायोजित बचत योजनाओं में निवेश पर उच्चतर रिटर्न ब्याज अर्जित होगा। चूंकि निम्न ब्याज दरों से अधिक निवेश आकर्षित नहीं होगा, इससे बैंक जमाओं में गिरावट भी आ सकती है और अंततोगत्वा बैंकों के लाभ पर इसका असर पड़ सकता है।

नीतिगत दरों की घोषणा करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शशिकांत दास ने कहा कि ये फैसले विकास की गति को बढ़ावा देते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को निम्न स्तर पर बनाये रखने के उद्देश्य से किया गया है। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने वर्तमान और उभरती वृहद आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी यानी तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) को 6.50 प्रतिशत पर बनाये रखने का फैसला किया। स्टैंडिंग डिपोजिट फैसिलिटी (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनी रही जबकि मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) और बैंक रेट 6.75 प्रतिशत पर है। यह दूसरी बार है जब महंगाई दर पर

अंकुश लगाने के लिए 250 आधार बिन्दु कंजरवेटिव रेट में वृद्धि के बाद नीतिगत दरों को स्थिर रखा गया है। उन्होंने कहा कि ये फैसले विकास में सहायता प्रदान करते हुए 2 प्रतिशत कम/ज्यादा के भीतर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति के लिए मध्यम अवधि टार्गेट अर्जित करने के लक्ष्य के अनुरुप हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि एक निम्न ब्याज दर अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अच्छा है क्योंकि इससे व्यय, उपभोग और विकास को बढ़ावा मिलेगा। कम ब्याज दरें लोगों को उधार लेने और अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी। चूंकि रेपो दर पिछले दो दशकों के सबसे निचले स्तर पर है, ऐसे लोगों के लिए यह लाभदायक स्थिति है जो बैंकों से ऋण लेना चाहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जो लोग बैंकों से पैसा उधार लेने के इच्छुक हैं, उन्हें कम ब्याज दरों पर यह पैसा मिल जाएगा जिसका यह भी अर्थ है कि मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स आधारित लेंडिग दर (एमसीएलआर) या बाहरी बेंचमार्क दरों पर आधारित ऋणों पर समान मासिक किस्त (ईएमआई) भी ग्राहकों के लिए निम्न बनी रहेगी। कोविड-19 महामारी के कारण पहले ही हमारी मासिक पारिवारिक आय पर प्रभाव पड़ चुका है, इसलिए ऐसे लोगों के लिए यह लाभदायक रहेगा जो वर्तमान में होम लोन चुका रहे हैं। निम्न ब्याज दरों का सकारात्मक लाभ रियल एस्टेट और हाउसिंग सेक्टर को भी मिलेगा क्योंकि अधिक से अधिक लोग कम ब्याज दरों के कारण प्रोपर्टी खरीदने के प्रति उत्सुक होंगे जिससे रियल एस्टेट सेक्टर को लाभ होगा।

जाहिर है रिजर्व बैंक से इसी प्रकार के सावधानी भरे कदमों की उम्मीद की जाती है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए रिजर्व बैंक ने 5.3 प्रतिशत की मुद्रास्फीति का अनुमान लगाया है जो ऊपरी अधिकतम सीमा से कम है फिर भी इसे अभी भी व्याप्त वैश्विक भू-राजनीतिक स्थितियों और दूसरे देशों की अर्थव्यवस्थाओं की अनिश्चितताओं को देखते हुए बहुत आरामदायक नहीं कहा जा सकता और यही वजह है कि रिजर्व बैंक महंगाई दर को नियंत्रण में रखने पर अधिक फोकस्ड है। इसमें कोई सदेह नहीं कि भारत दूसरे देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है जिसका बड़ा श्रेय पहले से हमारी व्यवहारिक, युक्तिसंगत और समन्वित रही राजकोषीय और वित्तीय नीतियों को जाता है।

दरअसल, जीडीपी में वृद्धि मुद्रास्फीति पैदा करती है और अगर मुद्रास्फीति पर अंकुश न लगाया जाए तो इससे अति मुद्रास्फीति का जोखिम पैदा हो जाता है। आज अधिकांश अर्थशास्त्री मानते हैं कि मुद्रास्फीति की कम मात्रा, एक साल में लगभग 1 से 2 प्रतिशत की मात्रा अर्थव्यवस्था के लिए उतनी बाधक नहीं है जितनी लाभदायक है। नियंत्रित, निम्न मुद्रास्फीति के साथ रोजगार बढ़ता है। उपभोक्ताओं के पास वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए ज्यादा पैसा आता है जिससे अर्थव्यवस्था को लाभ मिलता है और उसमें वृद्धि होती है।

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