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केरला स्टोरी

July 9, 2023
in Perspective

By सरिता शांडिल्य @saritashandilya

जब से ओ.टी.टी.आया है, मैं आसानी से फ़िल्म देखने नहीं जाती , रात में सोने के पहले कुछ देख लिया, बस । केरला स्टोरी के वहाँ आने का इंतज़ार कर रही थी । मगर कश्मीर फाइल्स के धमाल के  बाद रूक नहीं पाई और केरला स्टोरी देखने गई ।

शुरूआत तो ठीक थी- पापकार्न आया, कॉफ़ी आई- फ़िल्म शुरू हुई और जब इंटरमिशन हुआ तो मुझे अच्छा नहीं लगा । ऐसा लगा जैसे कहानी चलती रहना चाहिए  । फिर भी सिस्टम के साथ तो चलना ही है और मूवी थियेटर में इंटरवल होता ही है । मैं फ़िल्म में  डूब गई ।

जब फ़िल्म ख़त्म हुई, एक बार फिर मुझे धक्का  लगा , जैसे किसी ने झकझोर दिया हो । अरे फ़िल्म ख़त्म हो गई और स्क्रीन पर लिखा आ रहा था कि ये कहानी, किसका सच है । यह कहानी कई सच कहानियों पर आधारित है, ये तो हमें शुरू में ही बता दिया था निर्माताओं ने । फ़िल्मांकन में कल्पना के रंग भी शामिल होते हैं । फ़िल्म लागत नहीं निकाल पाई तो अगली फ़िल्म कैसे बनेगी । कुछ तो रंग डालना पड़ेगा ।

मैं सभी धर्मों का सम्मान करती हूँ और सभी धर्म , मनुष्य के भले की बात करते हैं । कोई धर्म मानवता के विरूद्ध बात नहीं करता । फिर आतंक और ह्यूमन बम की ज़रूरत क्यों पड़ती है । लोगों की भावनाओं से खेलकर अल्लाह का रास्ता या जन्नत का लालच दिखाकर बरगलाने की कोशिश क्यों रहती है । सभी देशों का सुरक्षा बजट बढ़ता क्यों रहता है ?

आतंकवाद हमारी दुनिया का सच है, इसे तो हम झुठला नहीं सकते ! हर संभव तरीक़े से आतंक की दुनिया बनाई जाती है । केरला स्टोरी का विषय अख़बारों के पन्ने रोज़ दर्ज करते हैं ।

फिल्मों के विषय भी तो समाज से ही आते हैं । समाज साहित्य का आईना होता है और आजकल का साहित्य फिल्में और विडियो हैं । केरला स्टोरी मूवी किसी को तोड़ती नहीं है , बल्कि लड़कियों – सभी लड़कियों – को कुछ सिखा रही है ।घर के बाहर की दुनिया के कड़वे सचों से अवगत करा रही है । माँ बाप को अलर्ट कर रही है  कि लड़कियों को दुनिया की वास्तविकता सिखा कर बाहर भेजिये । ये मूवी जोड़ रही है । उन लड़कियों को क्या कहेंगे आप,  जिन्होंने ये झेला या,  जो अभी भी लापता हैं । हमारे आपके बच्चे फँसते हैं , तब दर्द महसूस होता है ।

सिनेमा की बात चल रही है तो कालीकट देखिये नेटफ्लिक्स पर । स्वीडन में भी तो यही सब हो रहा है । यंग बच्चों का ब्रेन वाश करते हैं । झूठ बोल कर । इनके अलावा बाकी सब हराम है ।  मरने के बाद जन्नत की चिंता है , मगर जीवित आदमी या पशु की पीड़ा की अनुभूति नहीं है । दोगला पन इतना है कि अपने हित के लिये धर्म की परिभाषा भी बदल देते हैं । इनके छलावों में ना आएं । इन्हें हर संस्कृति से समस्या है । जिनका दूध पीकर बड़े होते हैं, उनका कत्ल करने में भी नहीं झिझकते हैं । ना ही इनके हाथ काँपते हैं । सब जगह तो झूठ को आधार बनाकर बरगलाया गया है । यदि अल्लाह सब सम्भाल लेगा । तब झूठ की ज़रूरत क्या है । अल्लाह का रास्ता तो सच का रास्ता है, अमन चैन का रास्ता है । इस्लाम के अलावा बाकी सब हराम है । सब काफिर है । ऐसा क्यों ? अपराधियों को दंड मिलना ही चाहिए ।

सॉफ़्ट टार्गेट को बरगलाना कोई धर्म नहीं सिखाता । आतंकी सब एक से होते हैं । जहां कम हैं , वहाँ भाई बनकर रहते हैं । सॉफ्ट रहते हैं । क्यों कि हमसे रोजगार पाते हैं । दोस्त बन जाते हैं । जहाँ ज्यादा हैं , कत्लेआम करते हैं । आतंक फैलाते हैं । विश्वास का सामाजिक सद्भाव कैसे योजनाबद्ध तरीके से तोड़ा जाता है, यही तो है केरला स्टोरी में । ब्रेन वाश से जो धर्म शुरू हो या जो ब्रेन वाश से जन्नत पहुँचाये वह फ़रेब ही तो है ।

क्या असलियत फिल्मों में नहीं दिखाना चाहिए ? आई एस आई एस और आतंक की सच्चाई है मूवी,  सच और कल्पना के प्रतिशत का अंतर हो सकता है । ये सिर्फ इंडिया में नहीं बल्कि स्वीडन और दुनिया भर में चल रहा है । एक ही एजेंडा है – मेरा धर्म जन्नत देगा , बाकी सब काफिर है और हराम है । मिर्ची क्यों लगती है , यदि किसी एजेंडे को कोई पहचान कर फ़िल्मांकन करता है । केरला स्टोरी और कश्मीर फाइल्स आँख खोलती हैं । कहीं कुछ होता है तभी विषय बनता है ।

केरला स्टोरी की लड़कियों या स्वीडन की लड़कियों या किसी भी देश की लड़कियों सावधान । प्रेम, विश्वास, दोस्ती, परिवार ,बच्चे जैसी पवित्र भावनाओं का सहारा लेकर जो भी आपको बरगलाने की कोशिश करें,  वे मक्कार नहीं तो और क्या हैं

भारत में रहकर अब्दुल कलाम और इरफान खान होना बहुत ज़रूरी है । आई एस आई एस के विरोध में या किसी भी क़िस्म के आतंक के ख़िलाफ़ प्रदर्शन और दर्द अखंड बने रहना चाहिए । फिर वह काल्पनिक फ़िल्म हो या सच पर आधारित फ़िल्मांकन या कोई गली कूचे की कहानी । एक्टिंग उम्दा है । दृश्य प्रभावित करते हैं । झूठ की फ़ैक्ट्री से खून खौलता है ।

हर जगह लड़कियाँ सॉफ़्ट टार्गेट हैं । केरला स्टोरी झकझोरती है ।

(ग़ज़ल पर पी.एच.डी. लेखिका एक उपन्यासकार,कवियित्री और ज्योतिष की आजीवन विद्यार्थी हैं. 30 वर्षों का व्यवसायिक दुनिया में काम करने का अनुभव रखती हैं)

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